भोर हुई 
उठो जागो 
सारे 
नील गगन में 
छुप गए 
तारे !
पूर्व दिशा में 
लाली छाई 
जीवन रस 
छलकाती उषा 
आई !
गुलशन-गुलशन 
फूल है खिले 
पंछी भी चले 
अंबर को छूने !
डाल-डाल पर 
चिड़िया फुदक 
रही है 
ठंडी-ठंडी हवा भी 
गा रही है !
पूजा घर में 
मधुर आरती बोले 
भोर हुई उठो 
जागो सारे !
 

15 टिप्पणियां:
सूरज की लालिमा,फूलों की सौम्यता,पंछियों की चहचहाहट,सर-सर बहती हवा और मंदिर से आती मंगल ध्वनि- इन सब का एक साथ रसास्वादन बड़भागियों के ही हिस्से आता है।
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १८/९/१२ को चर्चा मंच पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका चर्चा मच पर स्वागत है |
वाह,क्या कहने है.
बहुत सुन्दर और स्फूर्तिमयी प्रस्तुति...
कोशिश रहती है कि भोर का यह स्फूर्तिमय समय रोज़ देखा करूँ ..... बेहतरीन कविता
वाह ... बेहतरीन ।
सुन्दर रचना ... भोर के साथ जीवन का प्रवाह शुरू हो जाता है ...
बहुत खूब ...
सुबह को जगाबे का आह्वान सुंदर रूप में है।
बहुत खूब...|
वाह कितनी सुंदर मनमोहक भोर है ।
वाह....क्या कहने
भोर के आगमन पर सुंदर प्रस्तुति
सुंदर मनमोहक भोर
प्रकृति में सब भोर का आनंद लेते हैं- सिवाए मनुष्य के!
बेहतरीन कविता |आभार
एक टिप्पणी भेजें