बुधवार, 20 मार्च 2013

क्षणिकाएँ ...


जैसे ...
आकाश की 
पृष्ठभूमि पर 
बादल
जैसे ...
सागर की 
पृष्ठभूमि पर 
लहर
वैसे ही 
चेतना की 
पृष्ठभूमि पर
विचार ...!

***
सुख के क्षण 
सरपट दौड़ते है 
दुःख के क्षण 
काटे नहीं 
कटते 
लंगड़ा कर 
चलते है 
शायद इसे ही 
समय सापेक्षता का 
सिद्धांत कहते है ...!

15 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत अच्छी क्षणिकाएं....
सुख के क्षण
सरपट दौड़ते है
दुःख के क्षण
काटे नहीं
कटते
लंगड़ा कर
चलते है
सच्ची....
:-(

सादर
अनु

रविकर ने कहा…

वाह क्या वैज्ञानिक थ्योरी-
आभार आदरेया -

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ...
दोनों प्रभावी .. सापेक्षता का सिद्धांत रचना पे लागू हो गया ...

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

bilkul sahi bat...suman jee ...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सहज सरल, अर्थपूर्ण

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

इन क्षणिकाओं में आपने बहुत ही खूबसूरती से मानव मन को अभिव्यक्त किया है, बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

bahut hi sundar rachana ....sadar aabhar.

India Darpan ने कहा…

बहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
बधाई

इंडिया दर्पण
पर भी पधारेँ।
*प्यार भरी होली*
शुभकामनायें !!

अनूप शुक्ल ने कहा…

क्या बात है! वाह!

Manav Mehta 'मन' ने कहा…

बहुत बढ़िया

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

sabhi lajabab .....badhai Suman ji .

Asha Joglekar ने कहा…


*** सुख के क्षण सरपट दौड़ते है दुःख के क्षण काटे नहीं कटते लंगड़ा कर चलते है शायद इसे ही समय सापेक्षता का सिद्धांत कहते है ...!

बहुत अच्छी क्षणिकाएं....

Saras ने कहा…

सुन्दर क्षणिकाएं सुमनजी ...!!!

Neeraj Neer ने कहा…

बहुत खूबसूरत ख्याल. सुन्दर प्रस्तुति.

Unknown ने कहा…

अति सुन्दर भावभरी रचना के लिए बधाई ।