क्यों देते हो उपदेश
ऐसे बनो वैसे बनो
नक़ल करने पर,
देते हो सजा !
फिर क्यों कहते हो
बनो उसके जैसा !
पूछो माली से ....
उसके बाग़ के,
फूल न्यारे खुशबू न्यारी
क्या जूही क्या मोगरा
फिर भी उसको कितना प्यारा !
हम भी तुम्हारे बाग़ के फूल है !
हर फूल दुसरे से अलग है !
देना स्नेह का खाद-पानी, फिर
हम अपना फूल खिलायेंगे !
सारी दुनिया में हम अपनी
ख़ुशबू सारी बिखरायेंगे !
ऐसे बनो वैसे बनो
नक़ल करने पर,
देते हो सजा !
फिर क्यों कहते हो
बनो उसके जैसा !
पूछो माली से ....
उसके बाग़ के,
फूल न्यारे खुशबू न्यारी
क्या जूही क्या मोगरा
फिर भी उसको कितना प्यारा !
हम भी तुम्हारे बाग़ के फूल है !
हर फूल दुसरे से अलग है !
देना स्नेह का खाद-पानी, फिर
हम अपना फूल खिलायेंगे !
सारी दुनिया में हम अपनी
ख़ुशबू सारी बिखरायेंगे !
12 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर शिक्षाप्रद बालकविता , आभार
सुंदर बाल कविता
बड़ों को सीख देती अच्छी रचना ..
हम भी तुम्हारे बाग़ के फूल है !
हर फूल दुसरे से अलग है !
देना स्नेह का खाद-पानी, फिर
हम अपना फूल खिलायेंगे !
सारी दुनिया में हम अपनी
ख़ुशबू सारी बिखरायेंगे !
sunder bal kavita
saader
rachana
हम भी तुम्हारे बाग़ के फूल है !
हर फूल दुसरे से अलग है !
देना स्नेह का खाद-पानी, फिर
हम अपना फूल खिलायेंगे !
सारी दुनिया में हम अपनी
ख़ुशबू सारी बिखरायेंगे !... bahut hi sahi nichod
बच्चों के लिये बहुत बढ़िया कविता रची है आपने.
सादर
बहुत ही अच्छा लिखा है ।
हम भी ये ही मानते है कि ...हर फूल की अपनी अलग ही खुशबु होती है
हर कोई एक जैसा हो तो दुनिया बोर लगे- वो कहते हैं ना- Variety is the spice of life. सुंदर कविता ॥
देना स्नेह का खाद-पानी, फिर
हम अपना फूल खिलायेंगे !
सारी दुनिया में हम अपनी
ख़ुशबू सारी बिखरायेंगे !
क्या बात है !
आदरणीय चन्द्र मौलेश्वर प्रसाद जी ने ठीक ही कहा है । :)
बहुत मन से लिखा आपने । अच्छी बाल कविता है ।
lovely.... and with a great message !!!
हम बच्चों को उसके जैसा बनाना चाहते हैं क्योंकि वह पैसेवाला है या फिर अपने जैसा-बगैर यह सोचे कि खुद हम ही क्या हैं!
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