डगमग डोले डगमग डोले
पानी ऊपर नाव रे
सखी, सहेली आओ देखो
कागज की ये नाव रे !
पानी बरसा तनमन हर्षा
खुशियों का इन्द्रधनुष खिला
तट के उस पार लिये चला
सुंदर सपनों का संसार रे
कागज़ की ये नाव रे !
तूफानों से ना ये घबराये
लहरों पर इतराती जाये
बिना मोल की विहार करायें
देखो कैसी इसकी शान रे
कागज़ की ये नाव रे !
गीत मेरे सुर तुम्हारे
आओ सब मिल-जुलकर गायें
भोला बचपन लौट न आये
नाचो देकर ताल रे !
डगमग डोले डगमग डोले
पानी ऊपर नाव रे !
24 टिप्पणियां:
mera mann bhi dole re ,,,,
कहां गए वो दिन ... वो कागज़ की कश्ती ... वो बारिश का पानी :(
बहुत सुन्दर नाव|
बच्चों का ध्यान रख कर लेखन --
प्रभावशाली लेखन ||
बधाई ||
Bahut Sunder Baal Rachna...
Pahli baar aayi aapke blog pe...man prasann ho gaya!
बढ़िया बाल कविता.
Bahut sunder rachna!!
Aapki naav ke saath hamara mann bhi balpan mein dolne laga...
aaj to is baarish mein naav bana kar khelne ka mann kar gaya ma'am.
aapke blog par aa kar accha laga,
aapko follow bhi kar rahi hoon.
-neha
बहुत सुंदर
बालकविता अच्छी लगी , बधाई
हां,बचपन को सम्पूर्णता में जीना ज़रूरी है ताकि बड़े होने पर वो काग़ज़ की कश्ती,वो बारिश के पानी की कसक बाकी न रहे।
लहरों पर इतराती जाये
बिना मोल की विहार करायें
देखो कैसी इसकी शान रे
कागज़ की ये नाव रे !
आन्तरिक भावों के सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना....
Sundar baal kavita padhvaane ke liye aabhar
mausam to aisa hi kuch karne ko kah raha hai:)
umda....maine print out nikal liya....bachcho ke liye:)
बहुत सुन्दर...अच्छा लगा.
कल 10/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत प्यारी बाल-कविता. ..बधाई. 'बाल-दुनिया' के लिए ऐसी कवितायेँ भेज सकती हैं.
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शब्द-शिखर / विश्व जनसंख्या दिवस : बेटियों की टूटती 'आस्था'
बहुत प्यारी बाल-कविता....
अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना...
बचपन याद दिला गई आपकी कविता. जब कागज की नाव बना बना कर किसी भी गढ्ढे के पानी में चला कर आनंद लेते थे.
हॄदय से धन्यवाद,,, बचपन की यादों को पुनः नैनो के समक्ष ला खड़ा किया,, लगा जैसे हम अभी बचपन मे ही है,, ओर अब कागज की नाव बनाकर बहती पानी की धार में छोड़ कर दूर तक उसकी राह के अवरोध को दूर करेंगे,,, कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन,,,
उदास रहता है मोहल्ले में बारिशो का पानी आजकल...
सुना है कागज की नाव बनाने वाले बड़े हो गए...
लहरों पर इतराती जाये
बिना मोल की विहार करायें
देखो कैसी इसकी शान रे
कागज़ की ये नाव रे !
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