बुधवार, 23 अक्टूबर 2013

छुटते जा रहे है कुल -किनारे


दिन ब दिन 
सूखती  जा रही है 
जीवन सरिता 
छुटते जा रहे है 
कुल-किनारे 
समय था तब 
समझ न थी 
अब समझ है 
लग रहा है 
समय कम है 
न बीते एक 
लम्हा भी 
तेरी याद बिन 
रिक्त न बीते 
हे ईश्वर ,
ऐसे ही बीते 
तेरे ही गीत 
गुनगुनाते   
हर पल 
हर लम्हा  … 



7 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

किनारे पर कौन बंधा रह पाया है...सबको सागर में मिलना ही है....

बहुत सुन्दर भाव!!!

सादर
अनु

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

सही है -समय पर होश नहीं आया
होश आया तो समय बीत गया
नई पोस्ट मैं

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

गहन भाव..... बहुत सुंदर

Asha Joglekar ने कहा…

समय कम है नाम लेते ही बीते, सुंदर प्रस्तुति सुमन जी।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

आखिर नदी को सागर की ही तलाश रहती है और अंतत: उसमे विलीन भी हो जाती है, बहुत ही सुंदर और सशक्त भाव.

रामराम.

Dr ajay yadav ने कहा…

सादर प्रणाम |
बहुत सुंदर सन्देश युक्त रचना |

Satish Saxena ने कहा…

मायूस लोग समाज को कुछ नहीं दे पाते , आशाएं बनी रहें ! मंगलकामनाएं !!