कहाँ रहती हो
कविता तुम
कभी तनहाई में
बुलाने पर भी
नहीं आती,
कभी बिन बुलाये
आ जाती हो
भावों के नुपुर
पहन कर,
छमा-छम छमछम
बरस जाती हो
मेरे आँगन में
झमा-झम झमझम
बारिश की तरह !
स्वाद तृप्ति का
दे चातक मन
तृप्त कर देती हो
कविता तुम .... !