रविवार, 24 अगस्त 2014

कविता तुम ...

कहाँ रहती हो 
कविता तुम 
कभी तनहाई में 
बुलाने पर भी 
नहीं आती,
कभी बिन बुलाये 
आ जाती हो 
भावों के नुपुर 
पहन कर,
छमा-छम छमछम 
बरस जाती हो 
मेरे आँगन में 
झमा-झम झमझम
बारिश की तरह !
स्वाद तृप्ति का 
दे चातक मन 
तृप्त कर देती हो 
कविता तुम   .... !

रविवार, 27 जुलाई 2014

टमाटर में वही ....




बैंगन में वही 
टमाटर में वही 
सृष्टि के कण-कण में वही 
कहते साधु संत महान 
सहन नहीं कर पाते
लेकिन 
आदमी में भगवान  … !

शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

लोग कहाँ पचा पाते है …

अभिव्यक्ति की आजादी 
हर किसी को  है 
लेकिन चंद संबुद्ध 
रहस्यदर्शी ही 
सही मायने में उसका 
उपयोग कर पाते है
जस का तस नग्न सत्य 
कह पाते है
जब हम और आप कहते है 
तब हजारों उंगलियां उठती है 
हमारी ओर विरोध स्वरूप 
लोग कहाँ पचा पाते है 
उस नग्न सत्य को    .... !!

सोमवार, 28 अप्रैल 2014

अटपटी चटपटी बातें …

कुर्सी एक, उसके 
पीछे भीड़ असंख्य है 
ऐसे लग रहा है 
जैसे देश की उन्नति 
प्रजा का सुख 
कुर्सी और पावर 
में ही निहित है 
चटपटी बात है  .... !

कीचड़ में कमल 
खिलता है 
कितनी सही बात है 
लोक लुभावन 
वायदों की कीचड़ मे 
सुगंध बिखेर रहा है 
कमल खिल रहा है 
अटपटी बात है    … !

मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

सत्ता की भूख …

कोई,
भैंसों का 
चारा  खाये 
कोई नग्न हो 
भैंसों को 
खिला रहा 
है   … 
बड़ी अजीब 
है ये 
सत्ता की
भूख भी 
कोई 
खा रहे है 
थप्पड़    
कोई 
खा रहे है 
जूते    … !!

रविवार, 9 मार्च 2014

मित्र कौन है ?

मित्र ,
रंगबिरंगी  चित्र  
विचित्र  पुस्तके 
न हम उनकी  
अपेक्षाओं  पर 
खरे उतरते है 
न वो हमारी  
तो फिर 
मित्र  कौन  है   ?
अच्छी पुस्तके 
सबसे  सच्चे  मित्र 
जब जी चाहे 
शेल्फ से निकालो 
पढ़ो  रख   दो  !
मित्र  कहाँ पढने देते है 
हर वो जरुरी पन्ना 
जब हम पढना 
चाहते  है  … !!

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

काफी है जीने के लिए ...

मान लो ,
मन नदी मानसरोवर 
उपर वासनाओं की लहरे 
निचे शीतल जल 
लगातार इन लहरों का 
चल रहा अर्थहीन -सा क्रम 
प्रवंचना के हवाई थपेड़े घेरे 
समीप किनारे शंख -सीप 
पसरे हो जैसे    … 
मृगछौने लंगड़ी इच्छायें ,
नदी गहराई में शांत जल
गहराई के भी भीतर छिपा 
प्रेम रूपी मुक्ता फल  
आओ , डुबकी लगाये 
इस प्रेम रूपी मुक्ता को 
उपर  लाये 
आकाश की तरह फैलायें 
गुलाब की तरह महकायें 
अपने-अपने   "मै " को 
छोटा  कर के हम  तुम  
मिल के  !
ऐसा प्रेम जरुरी ही नहीं 
काफी है जीने के लिए 
लेकिन  ,
"मै " इसमे बाधा है  !