मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

सत्ता की भूख …

कोई,
भैंसों का 
चारा  खाये 
कोई नग्न हो 
भैंसों को 
खिला रहा 
है   … 
बड़ी अजीब 
है ये 
सत्ता की
भूख भी 
कोई 
खा रहे है 
थप्पड़    
कोई 
खा रहे है 
जूते    … !!

9 टिप्‍पणियां:

Satish Saxena ने कहा…

वाह !!
आपको कैसे पता कि मैंने क्या लिखा था ……

अब ये जूता और चप्पल ही सही !
इस वतन के नौजवां भी,क्या करें ?

मंगलकामनाएं आपको !

राजीव कुमार झा ने कहा…

बहुत सुंदर एवं समसामयिक रचना.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

कल मैंने भी लिखा था कहीं कि ज़रा सोचकर देखें एक बार कि किस कदर सब्र का बाँध टूटा होगा उसका जिसने अंजाम की परवाह किये बिना जूता, चप्पल या थप्पड़ चला दिया!!
सोचता हूँ आज से तीस साल पहले स्व.शरद जोशी जी ने बिल्कुल यही सम्भावनाएँ व्यक्त की थीं अपने आलेख में. आज उनकी बातों को शत-प्रतिशत सही होता देख कह सकता हूँ कि उनका साहित्य सजीव ही नहीं भविष्योन्मुख था!!

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बेहद सटीक अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.

रामराम.

Asha Joglekar ने कहा…

सब्र का बांध तोडने वाली ही हरकते हैं इन तथाकथित नेताओं की।

Asha Joglekar ने कहा…

सत्ता के लिये ये जूते चप्पल भी खा लेंगे।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सटीक ... सब कुछ खा कर भी बने रहना चाहते हैं ...

Saras ने कहा…

वोट के लिए कुछ भी करेगा ........यही है मोटो आज के नेताओं का

संजय भास्‍कर ने कहा…

बेहद सटीक अभिव्यक्ति