रात के क्षण
सुबह से शाम
भागते दौड़ते
थक गया तन
जग क़ी राहें !
सुबह से शाम
कहते सुनते
उब गया मन
जग से बाते !
छाया तम है
गहरा !
निर्जन रात
एकांत, चारोओर
रजनी का पहरा !
उद्वेलित श्वास,
मन उदास
आँखे नम है !
क्यों उमड़ने लगी
आज फिरसे
भग्न अंतर क़ी
निराशा
छंद रचने के क्षण !
सुबह से शाम
भागते दौड़ते
थक गया तन
जग क़ी राहें !
सुबह से शाम
कहते सुनते
उब गया मन
जग से बाते !
छाया तम है
गहरा !
निर्जन रात
एकांत, चारोओर
रजनी का पहरा !
उद्वेलित श्वास,
मन उदास
आँखे नम है !
क्यों उमड़ने लगी
आज फिरसे
भग्न अंतर क़ी
निराशा
छंद रचने के क्षण !
16 टिप्पणियां:
भग्न अंतर क़ी निराशा
मन उदास
आँखे नम है !
निर्जन रात
............
koi sannata pasar raha hai , shayad koi geet ubhre
बहुत अच्छी लगी आपकी यह कविता.
सादर
सृजन के लिए कुछ तो निराशा, कुछ चोट आवश्यक है ना! अच्छी रचना के लिए बधाई सुमन जी॥
क्यों उमड़ने लगी
आज फिरसे
भग्न अंतर क़ी
निराशा
छंद रचने के क्षण !
हर सृजन के लिए कुछ वेदना होनी चाहिए ... सुन्दर अभिव्यक्ति
उद्वेलित श्वास,
मन उदास
आँखे नम है !
क्यों उमड़ने लगी
आज फिरसे
भग्न अंतर क़ी
निराशा
छंद रचने के क्षण !
बहुत सुंदर सुमनजी..... यही वेदना फिर शब्दों में ढल जाती है....
बहुत सुंदर कविता |अंतर्मन की वेदना को बहुत सलीके से आपके शब्द सामर्थ्य ने उजागर किया है बधाई सुमन जी |
आदरणीय सुमन जी,बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है.
निराशा के क्षणों में ही उत्कृष्ट सृजन होता है.
छंदों के शब्दों में भाव ऐसे ही पल में उमड़ते हैं. धन्यवाद.
बहुत बढिया,
बच्चों का प्यारा,
भग्न अंतर क़ी निराशा
मन उदास
आँखे नम है !
निर्जन रात
bha gayi rachna sundar
मन के भाव शब्दों में उतारना ही सृजन है ... बहुत अच्छा लिखा है आपने ...
aise kshano se chutkara nahee hava ke khonke se aae jeevan me padav na dale isee shubhkamnao ke sath.
rachana bhavo kee sunder abhivykti hai .
aabhar .
छंद रचने के क्षण जो दे जाती है उसी के हैं हम शुक्रगुजार । सुंदर कविता, बहुत अच्छी लगी ।
छाया तम है
गहरा !
निर्जन रात
एकांत, चारोओर
रजनी का पहरा
rajnee ke pehre me hi to vichaar nirbaadh aate hain......
http://shayaridays.blogspot.com
बहुत सुंदर कविता, बहुत बहुत बधाई
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