बुधवार, 8 जून 2011

कैसी हो याद ?

ये आज
सुबह-सुबह
किसकी
यादोंकी
ख़ुशबू
श्वास-श्वास में,
कस्तूरी घोल
गई !
शब्दों के
कलि-दल खुले
भाव कुछ
हुये है
 सुरमई !
यादों की वह
नर्म धूप
सुनहरी
तन-मन छू
आँगन में,
पसर गई !

14 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत कोमल भाव लिए सुन्दर रचना ..

Jyoti Mishra ने कहा…

memories are immortal !!
lovely

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

आपका स्वागत है "नयी पुरानी हलचल" पर...यहाँ आपके ब्लॉग की कल होगी हलचल... नयी-पुरानी हलचल

संजय भास्‍कर ने कहा…

आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !

संजय भास्‍कर ने कहा…

कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

itni pyaari si yaad ... dekhte dekhte hamen bhi chhu gai

Rachana ने कहा…

नर्म धूप
सुनहरी
तन-मन छु
आँगन में,
परस गई !
aangan me pasar gai sunder likha hai
rachana

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

सुंदर प्रयोग :)

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर पंक्तियाँ ....

Sunil Kumar ने कहा…

नर्म धूप
सुनहरी
तन-मन छु
आँगन में,
परस गई !
बहुत सुंदर पंक्तियाँ ...

Sunil Kumar ने कहा…

नर्म धूप
सुनहरी
तन-मन छु
आँगन में,
परस गई !
बहुत सुंदर पंक्तियाँ ...

कुमार राधारमण ने कहा…

आपके भीतर जो सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित हो रही है,वह बहुत प्रेरणादायी है।

ZEAL ने कहा…

Lovely creation !

Vivek Jain ने कहा…

सुन्दर रचना
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com