ये आज
सुबह-सुबह
किसकी
यादोंकी
ख़ुशबू
श्वास-श्वास में,
कस्तूरी घोल
गई !
शब्दों के
कलि-दल खुले
भाव कुछ
हुये है
सुरमई !
यादों की वह
नर्म धूप
सुनहरी
तन-मन छू
आँगन में,
पसर गई !
सुबह-सुबह
किसकी
यादोंकी
ख़ुशबू
श्वास-श्वास में,
कस्तूरी घोल
गई !
शब्दों के
कलि-दल खुले
भाव कुछ
हुये है
सुरमई !
यादों की वह
नर्म धूप
सुनहरी
तन-मन छू
आँगन में,
पसर गई !
14 टिप्पणियां:
बहुत कोमल भाव लिए सुन्दर रचना ..
memories are immortal !!
lovely
आपका स्वागत है "नयी पुरानी हलचल" पर...यहाँ आपके ब्लॉग की कल होगी हलचल... नयी-पुरानी हलचल
आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ...
itni pyaari si yaad ... dekhte dekhte hamen bhi chhu gai
नर्म धूप
सुनहरी
तन-मन छु
आँगन में,
परस गई !
aangan me pasar gai sunder likha hai
rachana
सुंदर प्रयोग :)
बहुत सुंदर पंक्तियाँ ....
नर्म धूप
सुनहरी
तन-मन छु
आँगन में,
परस गई !
बहुत सुंदर पंक्तियाँ ...
नर्म धूप
सुनहरी
तन-मन छु
आँगन में,
परस गई !
बहुत सुंदर पंक्तियाँ ...
आपके भीतर जो सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित हो रही है,वह बहुत प्रेरणादायी है।
Lovely creation !
सुन्दर रचना
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
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