माँ ने बचपन में मुझे
हाथ पकड़ कर चलना
सिखाया बोलना सिखाया
प्रेम करना सिखाया !
कविता ने मुझे फिर
सजा संवार कर
अलंकृत किया और
शब्दों के जरिये आपसे
दोस्ती करना सिखाया !
दोस्त थोड़े ही झूठ बोलते है ?
हर बार रचना को सुंदर कहते है
थोडा भरोसा थोडा विश्वास
थोडा लिखने का सलीका
आ ही जाता है !
जैसे-जैसे ये विश्वास
टूटने लगता है
फिर से लिख देती हूँ
एक कविता ताकि,आप फिर से
कहो कविता अच्छी है !
मै जानती हूँ
विश्वास अपना ही और
भरोसा अपना ही काम आता है
फिर भी .....
14 टिप्पणियां:
दूसरों पर विश्वास से अधिक अपना आत्मविश्वस साथ देता है॥ लिखते रहिए॥
इस सुन्दर सा सच के लिए क्या कहूँ सुमन जी .. कविता तो फूट कर ही बहती है और बहा ले जाती है .
ye aanmvishvaas hi to hai jo itna sach aur itna achcha likhne ki prerna de raha hai.ye aatmvishvaas ki chchaya humesha bani rahe.bahut achcha likha.
मै जानती हूँ
विश्वास अपना ही और
भरोसा अपना ही काम आता है
फिर भी ..... फिर भी भरमाता है मन , इस मन को आपने बहुत अच्छे से रखा है
विश्वास पर तो दुनिया क़ायम है।
यही विश्वास बना रहे ..... सुंदर लिखा है आपने
लिखना आ गया तो अच्छा लिखना भी आ जाता है. यह भी सच है कि अच्छा लिखने के लिए अच्छा पढ़ना बहुत काम आता है.
रचयिता अपने भीतर और बाहर- दोनों के प्रति होशपूर्वक है। यही साक्षी भाव है।
बेजोड़ भावाभियक्ति....
सच्ची हो या झूटी तारीफ किसे नही अच्छी लगती । पर आत्मविशावास अपना ही काम आता है । सीख देती प्रस्तुति ।
यही विश्वास बना रहे ... कविता अच्छी है !
सशक्त और प्रभावशाली रचना.....
संजय भास्कर
आदत...मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
behtreen abhivaykti.........
BEHAD PRABHAVSHALI RACHANA BADHAI SUMAN JI .
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