रविवार, 11 दिसंबर 2011

फिर भी ........


माँ ने बचपन में मुझे 
हाथ पकड़ कर चलना 
सिखाया बोलना सिखाया 
प्रेम करना सिखाया !

कविता ने मुझे फिर 
सजा संवार कर 
अलंकृत किया और  
शब्दों के जरिये आपसे 
दोस्ती करना सिखाया !

दोस्त थोड़े ही झूठ बोलते है ?
हर बार रचना को सुंदर कहते है 
थोडा भरोसा थोडा विश्वास 
थोडा लिखने का सलीका 
आ ही जाता है !

जैसे-जैसे ये विश्वास 
टूटने लगता है 
फिर से लिख देती हूँ 
एक कविता ताकि,आप फिर से 
कहो कविता अच्छी है !

मै जानती हूँ 
विश्वास अपना ही और 
भरोसा अपना ही काम आता है 
फिर भी .....

14 टिप्‍पणियां:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

दूसरों पर विश्वास से अधिक अपना आत्मविश्वस साथ देता है॥ लिखते रहिए॥

Amrita Tanmay ने कहा…

इस सुन्दर सा सच के लिए क्या कहूँ सुमन जी .. कविता तो फूट कर ही बहती है और बहा ले जाती है .

Rajesh Kumari ने कहा…

ye aanmvishvaas hi to hai jo itna sach aur itna achcha likhne ki prerna de raha hai.ye aatmvishvaas ki chchaya humesha bani rahe.bahut achcha likha.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

मै जानती हूँ
विश्वास अपना ही और
भरोसा अपना ही काम आता है
फिर भी ..... फिर भी भरमाता है मन , इस मन को आपने बहुत अच्छे से रखा है

मनोज कुमार ने कहा…

विश्वास पर तो दुनिया क़ायम है।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

यही विश्वास बना रहे ..... सुंदर लिखा है आपने

Bharat Bhushan ने कहा…

लिखना आ गया तो अच्छा लिखना भी आ जाता है. यह भी सच है कि अच्छा लिखने के लिए अच्छा पढ़ना बहुत काम आता है.

कुमार राधारमण ने कहा…

रचयिता अपने भीतर और बाहर- दोनों के प्रति होशपूर्वक है। यही साक्षी भाव है।

विभूति" ने कहा…

बेजोड़ भावाभियक्ति....

Asha Joglekar ने कहा…

सच्ची हो या झूटी तारीफ किसे नही अच्छी लगती । पर आत्मविशावास अपना ही काम आता है । सीख देती प्रस्तुति ।

Sunil Kumar ने कहा…

यही विश्वास बना रहे ... कविता अच्छी है !

संजय भास्‍कर ने कहा…

सशक्त और प्रभावशाली रचना.....


संजय भास्कर
आदत...मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

सागर ने कहा…

behtreen abhivaykti.........

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

BEHAD PRABHAVSHALI RACHANA BADHAI SUMAN JI .